Breaking News

पंजाब में धान की MSP 1800 रु से ज्यादा, लेकिन बिहार में 1200 भी नहीं मिल रहे दाम https://ift.tt/2Vr2pah

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को पंजाब और हरियाणा से आए किसानों ने घेर लिया है। लाखों की तादाद में आए किसान दिल्ली को बाहरी राज्यों से जोड़ने वाले हाईवे पर डेरा डाले हुए हैं। ये किसान केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इस विशाल धरना प्रदर्शन को शुरू हुए एक सप्ताह हो चुका है। ऐसे में सवाल उठा है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों में जो आक्रोश है, वो बिहार के किसानों में दिखाई क्यों नहीं देता है।

बिहार का मोकामा टाल क्षेत्र अपनी दालों के लिए खास पहचान रखता है। यहां करीब एक लाख हेक्टेयर जमीन पर दाल की खेती होती है। मोकामा टाल क्षेत्र के किसानों ने मई 2018 में न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए आंदोलन किया था। हालांकि इसका बहुत ज्यादा असर हुआ नहीं है। नालंदा, लखीसराय, पटना और शेखपुरा जिलों में फैले इस इलाके के किसान सिर्फ रबी सत्र के दौरान ही दलहन की उपज लेते हैं। बीते कई सालों से यहां के किसानों को दाल के सही दाम नहीं मिल पाए हैं।

टाल विकास समिति के संयोजक और मोकामा में खेती करने वाले वाले आनंद मुरारी कहते हैं, 'मोकामा-टाल क्षेत्र में सिर्फ रबी सत्र के दौरान दालों की खेती होती है। हम सबसे ज्यादा मसूर की खेती करते हैं। सालाना डेढ़ लाख टन मसूर का उत्पादन यहां होता है। साल 2015-16 में MSP 4200 और बाजार में मसूर की दाल का रेट 3200 रुपए क्विंटल था। इसी साल किसानों ने 7800 रुपए क्विंटल तक भी मसूर बेची थी। इसके बाद से ये रेट नहीं आया, कीमतें लगातार गिरती गईं।'

मोकामा-टाल क्षेत्र के किसान अपनी समस्याओं को लेकर बैठक करते हुए।

मुरारी कहते हैं, 'बिहार के किसानों को नहीं पता है कि MSP किस चिड़िया का नाम है। यहां के किसान भगवान भरोसे चल रहे हैं और सरकारें उनका शोषण कर रही हैं। बिहार में साल 2006 में ही एपीएमसी एक्ट समाप्त हो गया था। अब किसान खुले बाजार में उपज बेचने के आदी हो चुके हैं।'

वहीं, सीमांचल क्षेत्र में किसानों के मुद्दों पर काम करने वाले कार्यकर्ता विनोद आनंद ठाकुर का मानना है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों के मुकाबले बिहार के किसानों में जागरुकता की कमी है और वो इन कृषि कानूनों को अभी पूरी तरह से समझ भी नहीं पाए हैं। ऐसे में बिहार के किसान असमंजस की स्थिति में हैं।

पंजाब और हरियाणा में बिहार के मुकाबले किसानों के पास जमीन भी अधिक है। पंजाब में हर किसान के पास औसतन 3.62 हेक्टेयर जमीन है जबकि बिहार में औसत जमीन 0.61 हेक्टेयर ही है। बिहार और पंजाब में किसानों की आय में भी फर्क है। बिहार में किसान परिवार की औसतन आय 38 हजार रुपए सालाना है जबकि पंजाब में यह लगभग दो लाख चालीस हजार रुपए सालाना है। हालांकि इसका एक कारण दोनों राज्य की आबादी में बड़ा फर्क भी है।

बेगूसराय जिले के शोकहारा गांव के रहने वाले जय शंकर चौधरी एक छोटे किसान हैं। उनके पास करीब तीन बीघा जमीन है जिसमें से आधी पर ही वो खेती करते हैं, बाकी वो बंटाई पर देते हैं। जय शंकर चौधरी को कृषि कानूनों से कोई बहुत ज्यादा मतलब नहीं है। वो कहते हैं, 'हमें इसमें इतनी रूचि नहीं है क्योंकि हमारी इतनी अधिक उपज ही नहीं होती कि हम मंडी में जाकर फसल बेचें।'

पिछले साल मुख्यमंत्री मोकामा आए थे। उन्होंने मोकामा टाल के किसानों की समस्या पर बात की थी।

धान की उपज का सही दाम ना मिल पाने पर भी बिहार के किसानों में गुस्सा क्यों नहीं दिखाई देता है इस सवाल पर चौधरी कहते हैं, 'यहां किसान संगठित नहीं हैं। वो किसी तरह अपना पेट भरने में लगे हैं। पेट भरा होता तो अपने हक के बारे में भी सोचते।' वो कहते हैं, 'हमारे लिए खेती बहुत फायदे का सौदा नहीं है। बीज और खाद बहुत महंगा पड़ते हैं। सरकार की तरफ से इसकी कोई व्यवस्था नहीं हो पाती है। ऐसे में अधिकतर लोग अपनी जमीन बंटाई पर दे देते हैं। हमने भी आधी बंटाई पर दी है।' पंजाब और हरियाणा के किसान सबसे ज्यादा मंडी कानून में फेरबदल को लेकर आक्रोशित हैं। उनका सबसे बड़ा मुद्दा न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी हैं।

विनोदानंद ठाकुर कहते हैं कि बिहार के किसान इन मुद्दों को नहीं समझ पा रहे हैं क्योंकि बिहार में मंडी कानून 2006 में ही रद्द कर दिया गया था और अब अधिकतर किसान फसल काटते ही व्यापारियों को अपनी फसल बेच देते हैं। बिहार के सीमांचल इलाके में पहले गेहूं की खेती भी बड़े पैमाने पर होती थी लेकिन अब यहां मक्के की खेती ही ज्यादा होती है। मक्के की फसल की सरकार की ओर से खरीद की कोई व्यवस्था नहीं है।

विनोदानंद ठाकुर कहते हैं, 'इस इलाके को धान का कटोरा कहा जाता है। अभी सरकार को धान की खरीददारी शुरू करनी चाहिए थी लेकिन सरकार ने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया है। किसानों को मक्के की फसल लगानी है, ऐसे में वो जल्दबाजी में धान बेचकर मक्का के लिए खाद खरीद कर रहे हैं। जब सरकार धान का खरीद शुरू करेगी, तब छोटे किसानों के पास धान रहेगा ही नहीं, सिर्फ बड़े किसानों के पास ही धान रहेगा।'

बिहार में कम है किसानों की आय

पंजाब और हरियाणा में बिहार के मुकाबले किसानों के पास जमीन भी अधिक है। पंजाब में हर किसान के पास औसतन 3.62 हेक्टेयर जमीन है जबकि बिहार में औसत जमीन 0.61 हेक्टेयर ही है।

बिहार में किसानों की आय कम होने का एक बड़ा कारण ये भी है कि जब भी कोई फसल कटती है उस समय बाजार में उसका दाम कम रहता है। छोटे किसानों को अपनी फसल मजबूरी में बेचनी पड़ती है। बिहार में अधिकतर किसान छोटे किसान है और वो फसल कटते ही जो भाव मिलता है उस पर ही उपज बेच देते हैं।

मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, सहरसा, बेगूसराय, समस्तीपुर आदि जिलों में मक्का की खेती अधिक होती है। जो किसान जनवरी-फरवरी में 2400 रुपए क्विंटल बेचा है उसी की मक्का को जून में कोई 1200 रुपए में लेने को तैयार नहीं था। मुरारी के मुताबिक, बिहार में कृषि की बदहाली की एक बड़ी वजह ये भी है कि यहां किसानों के पास ना इंफ्रास्ट्रक्टर है और ना ही पूंजी है।

वो कहते हैं, 'पंजाब के किसानों के खुशहाल होने की वजह ये है कि अभी उनका धान कटा है और उन्होंने गेहूं बोने की तैयारी कर रहे हैं। उनके पास बेचने के लिए मंडियां हैं। धान की MSP 1883 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि बिहार में कोई धान को 1200 क्विंटल तक में खरीदने को तैयार नहीं है। हम गेहूं कैसे बोएं? किसानों ने धान की फसल में जो पूंजी लगाई थी वो ही नहीं निकल पा रही है।'

क्या बिहार में भी आंदोलन हो सकता है?

विनोदानंद ठाकुर कहते हैं कि यदि बिहार में किसान आंदोलन खड़ा भी हुआ तो उसके मुद्दे अलग होंगे। ठाकुर कहते हैं, 'बिहार में आंदोलन हो सकता है, लेकिन उसका मुद्दा अलग होगा। मक्के और धान की सही समय पर खरीददारी यहां आंदोलन का मुद्दा होगा ना कि नए किसान कानून।'

वहीं अखिल भारतीय पंचायत परिषद के अध्यक्ष वाल्मिकी प्रसाद सिंह कहते हैं कि कृषि कानूनों के बारे में पंचायत स्तर पर लोगों से राय ली जानी चाहिए। वो कहते हैं, 'बिहार से यदि आंदोलन शुरू हुआ तो फिर अंतिम आंदोलन होगा। बिहार ने शुरू किया तो बैठेगा नहीं। जेपी आंदोलन को भी बिहार ने ही अंजाम पर पहुंचाया था।'



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
बिहार में किसानों की आय कम होने का एक बड़ा कारण ये भी है कि जब भी कोई फसल कटती है उस समय बाजार में उसका दाम कम रहता है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3lyolL9

No comments