Breaking News

वह काला दिन; जब भोपाल में लाशें ढोने के लिए गाड़ियां छोटी और कफन कम पड़ गए https://ift.tt/3gdYMhz

दो-तीन दिसंबर 1984..वह दिन, जिसका दर्द भोपाल आज भी नहीं भुला पाया है। जब सब चैन की नींद सो रहे थे, तभी भोपाल के एक बड़े इलाके में लाशें बिछ गईं। इतनी लाशें कि उन्हें ढोने के लिए गाड़ियां छोटी पड़ गईं। अस्पताल में कफन कम पड़ गए। यह हुआ था यूनियन कार्बाइड फैक्टरी के प्लांट नंबर सी के टैंक नंबर 610 से रिसी मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के कारण।

उस दौर के लोग आज भी वह मंजर भूले नहीं हैं। इसका दंश आज भी पीढ़ियां भुगत रही हैं। वे कई बार उस रात को याद कर सिहर उठते हैं। उस घटना को कमलेश जैमिनी ने अपने कैमरे में कैद किया था। वह फैक्टरी के ऑफिशियल फोटोग्राफर भी थे। 14 दिन तक वे घर नहीं गए।

हमीदिया अस्पताल में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आने, मदर टेरेसा के आने, लाशों से भरे ट्रक, लाशों से पटे कमरा नंबर 28 को भी उन्होंने तस्वीरों में उतारा था। गैस त्रासदी की 36वीं बरसी पर उनकी दुर्लभ तस्वीरों में महसूस करें उस स्याह रात की कहानी....

लाशों से भरे ट्रक आने का सिलसिला हमीदिया अस्पताल में जारी रहा। मरने वालों की संख्या कितनी थी, इसे लेकर आज तक सही आंकड़े सामने नहीं आ सके हैं।
गांधी मेडिकल कॉलेज के शवगृह के बाहर लाशें ज्यादा होने से कफन कम पड़ गए। कमरों में लाशें रखने के लिए जगह कम पड़ने लगी तो शवों को बाहर रखवा दिया गया
हमीदिया अस्पताल में लाशों से भरे ट्रक लगातार आ रहे थे। ऐसे में अस्पताल में तैनात पुलिसकर्मियों को भी नहीं समझ आ रहा था कि क्या किया जाए।
अफरा-तफरी के बीच हमीदिया अस्पताल में लोगों को पर्याप्त इलाज भी नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में बेटों को इलाज नहीं मिला, तो एक पिता रोते हुए गुहार लगाता रहा।
एक बार गैस रिसाव के बाद अचानक दोबारा अफवाह उड़ी कि गैस फिर निकली है, तो लोग सिर पर सामान रखकर दूसरी जगह भागने लगे।
जहरीली गैस के कारण महिला की आंखों की रोशनी चली गई। उसने भागने की कोशिश की, जिससे वह भट्‌ठी में गिर गई। झुलसने के बाद बचाने की जद्दोजहद करता पति।
त्रासदी के बाद हर धर्म-संप्रदाय के लोग पीड़ितों की मदद के लिए आगे आ गए। मदद के लिए बाजार में घूम-घूमकर चंदा इकट्ठा किया गया।
जेपीनगर में घर के बाहर सो रहे अखबार के हॉकर ब्रज नेमा उठ नहीं पाए। नींद में ही जहरीली गैस ने उसे अपने आगोश में ले लिया।
गांधी मेडिकल कॉलेज पहली लाश एक लड़की की आई। इसके बाद अस्पताल में इनका सिलसिला बढ़ता गया। हालत ये रही कि जगह भी कम पड़ गई।
जहरीली गैस ने बच्चों के फेफड़े से लेकर आंखों तक गहरा असर किया। इसके बाद बच्चे की आंखों की रोशनी चली गई। उसे अस्पताल लाया गया, जहां दम तोड़ दिया।
फैक्ट्री से पास में एक बिल्ली बैठी थी। गैस के कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई। थोड़ी देर बाद उसकी मौत हो गई। इसके अलावा एक गाय की आंखों से खून निकल आया।
जेपी नगर स्थित यूनियन कार्बाइड का एरियल व्यू फोटोग्राफ। इसे कमलेश जैमिनी के पिता हरकृष्ण जैमिनी ने फ्लाइंग क्लब से पुष्पक विमान लेकर क्लिक किया था।
गैस त्रासदी के बाद मदर टेरेसा अपनी सहयोगी सिस्टर्स के साथ भोपाल आईं। वे हमीदिया अस्पताल में रोगियों की मदद के लिए जुट गईं।
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के प्लांट नंबर 'सी' के टैंक नंबर 610 में गैस भरी थी। इसमें पानी भर गया। केमिकल रिएक्शन से बने दबाव को टैंक सह नहीं पाया और वो खुल गया था।


आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
गांधी मेडिकल कॉलेज के कमरा नंबर 28 में जहां लाशें रखी जा रही थीं। पूरा कमरा लाशों से भर गया।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3mzQDX4

No comments