फैशन हो या खाने का मेन्यू, टूथ ब्रश करना हो या नहाना; आपके हर कदम से घटेगा प्रदूषण https://ift.tt/36qrUie
दुनिया के सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी में से एक भोपाल गैस कांड के बाद से देश में हर साल 2 दिसंबर को नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे होता है। इसका मकसद है ऐसे हादसों को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाना। मगर प्रदूषण तो ऐसे किसी हादसे के बिना भी लगातार फैल रहा है। हमारे आस-पास हवा, पानी और जमीन में तेजी से खराब हो रही है।
जहरीली हवा के मामले में भारत दुनिया के टॉप 5 देशों में शामिल हैं। अकेली इस वजह से हमारे देश में हर साल करीब 17 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से ज्यादातर स्ट्रोक, हार्ट अटैक, डायबिटीज, फेफड़ों के कैंसर से समय से पहले जान गवां बैठते हैं। 2019 में वायु प्रदूषण के चलते करीब 1 लाख 16 हजार नवजातों की जन्म से एक महीने के भीतर की मौत के मुंह में समा गए, यानी 2019 में हर पांच मिनट में एक नवजात बच्चे की मौत हुई।
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े समझौते हो रहे हैं। कानून और नीतियां बन रही हैं, मगर आज हम बताते हैं उन छोटे-छोटे कदमों के बारे में जिन्हें हम रोज उठाकर काफी हद तक प्रदूषण को कम कर सकते हैं। यह छोटे-छोटे कदम मिलकर बड़े-बड़े उद्योगों और सरकारों को भी नीति बदलने को मजबूर कर देंगे।
कोयले की बिजली बचाना जरूरी, एसी 1 डिग्री बढ़ाकर चलाने से 6% बचत
- भारत में करीब 57% बिजली की जरूरत कोयले से पूरी होती है। ऐसे में जरूरी हैं कि हम निजी तौर पर ग्रीन एनर्जी की रुख करें।
- 27 डिग्री सेल्सियस पर एसी चलाकर 30% तक बिजली बचाना संभव, एक डिग्री ज्यादा टेम्प्रेचर से बचेगी 6% बिजली।
- मकान या दफ्तर के छत को इन्सुलेट रखें, क्योंकि छत से ही सदीर् में 22% तक गर्मी लीक होती और गर्मी में करीब 22% तक तापमान बढ़ता है।
- जिन कमरों में जरूरत नहीं, उनके बल्ब, पंखे, एसी और बाकी उपकरण बंद रखने से 20% तक बिजली की बचत मुमकिन है।
घरों पर सोलर पैनल लगाएं:- भारत में फिलहाल 38% ऊर्जा जरूरतें ग्रीन और न्यूक्लियर माध्यमों से पूरी हो रही है, जो 2030 तक बढ़कर 40% हो जाएगा।
पीने वाला पानी बचाएं:-धरती पर 96.5% पानी खारा है। बचे हुए बाकी पानी में से दो तिहाई स्थायी बर्फ के रूप में लॉक है इसलिए...
- ब्रश करते हुए टैप बंद रखने से रोज घर में 7 से 10 लीटर तक पानी बचाया जा सकता है।
- इससे एक साल में 4 मिनट तक 100 बार नहाने के लिए पानी बचेगा।
- टॉयलेट में रूटीन के अलावा कुछ और फ्लश न करें। इससे एक बार में 6 से 10 लीटर पानी बचेगा।
- डिस्पोजल को छोड़ें रियूजेबल को अपनाएं।
- टॉयलेट पेपर का एक रोल बनाने में 140 लीटर पानी खर्च होगा।
- वहीं एक डिस्पोजल डाइपर बनाने में करीब 500 लीटर पानी लगता है।
दिल्ली एनसीआर समेत ज्यादातर बड़े शहर आबोहवा बेहद खराब
धूल और धुएं के शहर बनने की 5 बड़े कारण
1- धूल और गाड़ियों का प्रदूषण:-56% पीएम (particulate matter) 10 की वजह शहरों में उड़ने वाली धूल। 20% पीएम 2.5 की वजह वाहनों से निकलने वाला धुआं।
सोर्स: आईआईटी कानपुर
2- पराली का जलाया जाना:-दिल्ली-एनसीआर में सभी तरह के प्रदूषण के कणों का 17-26% पराली जलाने के कारण।
सोर्स: आईआईटी कानपुर
3- ठंड में हवा की स्पीड और चक्र:-तेज हवा प्रदूषण करने वाले कणों को उड़ा ले जाती है, मगर सर्दियों में हवा की स्पीड कम होने से ज्यादातर शहरों में प्रदूषण बढ़ जाता है।
ठंड में तापमान तेजी से गिरने से जमीन के पास की ठंडी हवा और ऊंचाई पर ठंडी हवा के बीच गर्म हवा फंस जाती है। इससे गर्म हवा के ऊपर जाने की सामान्य प्रक्रिया बंद हो जाती है। इससे प्रदूषण वाले कण वातावरण में बने रहते हैं।
सोर्स: नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी
4- दो विपरीत दिशाओं की हवाएं:-सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर में 72% हवाएं उत्तर-पश्चिम दिशा से बहती हैं। वहीं, 28% गंगा के मैदानों से आती हैं। दोनों दिशाओं से आने वाली हवाएं टकराती हैं, ऐसे में प्रदूषण करने वाले कण पूरे इलाके में बने रहते हैं।
सोर्स: नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी
5- मानसून का विदा होना:- आमतौर पर अक्टूबर में मानसून उत्तर पश्चिम दिशा से विदा होता है और हवाओं का रुख पलट जाता है। ऐसे में राजस्थान पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धूल भरी हवाएं उत्तर भारत में छा जाती हैं।
सोर्स: नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी
दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषण वाले देशों में भारत का पांचवां नंबर
कार्बन उत्सर्जन में भारत का चौथा स्थान, मगर आबादी के हिसाब काफी कम
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