जिसे 70 साल बाद राम की पूजा का अधिकार मिला, जन्मभूमि से 100 किमी दूर रहता है परिवार, आज करेगा रामलला के दर्शन https://ift.tt/3fuqiW3
22-23 दिसंबर 1949 की रात...महंत अभयराम दास और उनके 60 से ज्यादा साथियों ने राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्ति विवादित स्थल पर रख दी। उन लोगों ने कहा कि रामलला ने जन्म लिया है और जन्मस्थान पर अपना कब्जा कर लिया है। मामले में एफआईआर हुई। जिला प्रशासन ने विवादित स्थल पर किसी भी तरह की एक्टिविटी पर रोक लगा दी।
इसके बाद 16 जनवरी 1950 को हिन्दू महासभा के नेता गोपाल सिंह विशारद ने सिविल कोर्ट में मुस्लिम पक्ष के खिलाफ मुकदमा दायर कर कहा कि रामलला, माता जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियों को न हटाया जाए, न ही उन्हें दर्शन और पूजा करने से रोका जाए।
33 साल पहले गोपाल सिंह विशारद की मौत हुई तो सिविल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उनके बेटे राजेन्द्र सिंह विशारद ने केस की पैरवी की। 69 साल बाद फैसला आया। अब लगभग 10 महीने बाद श्रीराम जन्मभूमि पूजन के लिए उन्हें बुलाया गया है। अयोध्या पहुंचने से पहले उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि मुझे अभी यह नहीं मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, मेरे परिवार को रामलला के दर्शन का अधिकार मिला है या पूजा कराने का।
श्रीराम जन्मभूमि से 100 किमी दूर रहता है गोपाल सिंह विशारद का परिवार
उनका परिवार जन्मभूमि से लगभग 100 किमी दूर बलरामपुर में रहता है। उनके बेटे राजेन्द्र सिंह भी वहीं अपने परिवार के साथ रहते हैं। बलरामपुर के वीर विनय चौक से लगभग आधे किमी दूर तुलसी पार्क मोहल्ले में उनका घर लगभग डेढ़ हजार वर्ग फीट में बना हुआ है। काफी समय से मकान की पुताई नहीं हुई है। 80 साल के राजेन्द्र सिंह बैंक की नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। घर मे उनकी पत्नी, छोटी बहू और उनकी 10 साल की पोती रहती है। बड़ा बेटा लखनऊ में प्रॉपर्टी डीलिंग करता है जबकि छोटा बेटा नेवी में है।
जब पिता ने मुकदमा किया तब 13-14 साल की उम्र थी, नेताओं का आना जाना बढ़ गया था
राजेन्द्र सिंह बताते है कि हम लोग मूल रूप से झांसी के रहने वाले हैं। पिता जी बाद में अयोध्या आकर बस गए थे। यहां पर उन्होंने छोटा सा जनरल स्टोर खोला था और लकड़ियों का काम करते थे। मुझे याद है कि दुकान का नाम बुंदेलखंड स्टोर के नाम से था। पिता जी उस समय हिन्दू महासभा के नेता थे और कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे। मैं 1968 में बैंक की नौकरी करने बलरामपुर आ गया। इसके बाद यहीं का होकर रह गया।
माता-पिता भी साथ आ गए, लेकिन पिता जी को यहां ज्यादा अच्छा नहीं लगता था। उन्हें बैठकी करना पसंद था तो जब तक वह चलते-फिरते रहे अयोध्या जाया करते थे। मंदिर-मस्जिद विवाद में मुख्य चेहरा रहे केके नैयर साहब से पिता जी की खूब बनती थी। दोनों घंटों बात करते थे। नैयर साहब बलरामपुर घर भी आए हैं।1986 में पिता जी की मौत हो गयी।
महीने में लगभग 2 बार फैजाबाद जाना पड़ता था, पहली बार लखनऊ में लगातार 20 दिन से ज्यादा रुकना पड़ा था
राजेन्द्र सिंह कहते है कि पिता जी की मौत के बाद मुझे केस की पैरवी से जुड़ना पड़ा। हमने पूछा कि आप नौकरी कर रहे थे तो क्यों जुड़े, उन्होंने कहा कि राम का काम था इसलिए जुड़ गया। वो आगे कहते है कि जब तक फैजाबाद में मामला रहा, तब तक महीने में 2 बारा जाना होता था। फिर जब मामला लखनऊ हाईकोर्ट में पहुंचा तो वहां भी जाना पड़ता था, लेकिन 2010 में फैसले से पहले मुझे पहली बार बीस दिन से ज्यादा लखनऊ में रुकना पड़ा। तब विहिप वालों ने कार्यालय में ही रुकने की व्यवस्था की थी।
फैसला आने के बाद से अब तक नही किया रामलला के दर्शन
राजेन्द्र सिंह कहते है कि मुझे गर्व है कि जो सपना पिता जी ने देखा था, वह उनके न रहने के बाद मेरे रहते पूरा हो गया। भगवान ने अच्छा रिजल्ट दे दिया। अब उनके भूमिपूजन में जा रहे हैं, इससे अच्छा सौभाग्य कहां मिलेगा। आज पूरा हिन्दू समाज गदगद है। उसी तरह मैं भी गदगद हूं। फैसला आने के बाद मैं सिर्फ दो बार फैजाबाद गया हूं, लेकिन रामलला के दर्शन नहीं कर सका। अब आज दर्शन करेंगे ।
अभी तक समझ नहीं पाए क्या फैसला है
राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है, लेकिन अभी तक मुझे इसका मतलब नहीं समझ आया। जब पिताजी दर्शन करने जाते थे तो उन्हें रोक दिया गया था, तब उन्होंने मुकदमा किया था। अब मुझे यह नहीं पता है कि रामलला जाकर सिर्फ दर्शन करने को ही पूजा का अधिकार माना जाएगा या वहां पूजा कराने का पूरा अधिकार दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि अभी तक मैंने किसी वकील से भी नहीं पूछा है। अब यह कार्यक्रम खत्म हो तो मैं अपने वकील से बात करूंगा।
क्या है फैसले का मतलब
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोपाल सिंह विशारद को दिए गए अधिकार पर जब हमने रामलला केस से जुड़ी रही सीनियर एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री से बात की। उन्होंने बताया कि गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में जो मुकदमा किया था, वह था कि उन्हें भक्त के रूप में पूजा करने का अधिकार दिया जाए न कि पुजारी के रूप में पूजा का अधिकार दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवम्बर 2019 को अपने फैसले में भी गोपाल सिंह विशारद के परिवार को आम भक्तों की ही तरह पूजा का अधिकार दिया गया है। चूंकि, गोपाल सिंह विशारद का भी एक केस था तो कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुना दिया। इसे गलत आशय में नहीं लेना चाहिए।
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