1985 में राजीव गांधी के पीए ने रात 2.30 बजे फोन करके जोगी से कहा था- तुम्हारे पास ढाई घंटे हैं, सोच लो राजनीति में आना है या कलेक्टर रहना है https://ift.tt/2ZPwfZw
इंदौर में 1985 में अजीत जोगी कलेक्टर थे। अपनी तेजतर्रार कार्यशैली और बेबाक बयानबाजी के कारण उस समय वह चर्चित रहते थे। एक रोज कलेक्टर बंगले में देर रात फोन बजता है। एक कर्मचारी फोन उठाकर बताता है कि कलेक्टर साहब सो रहे हैं।
दूसरी ओर से एक आदेश देती आवाज आती है..."कलेक्टर साहब को उठाकर बात कराइए"। साहब अब फोन लेते हैं। हेलो कहते ही दूसरी ओर से कहा जाता है, "तुम्हारे पास ढाई घंटे हैं... सोच लो। राजनीति में आना है या कलेक्टर ही रहना है। दिग्विजय सिंह लेने आएंगे, उनको फैसला बता देना"।
यह कॉल था तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पीए वी.जॉर्ज का। पूर्व मुख्यमंत्री जोगी का शुक्रवार दोपहर 3.30 बजे निधन हो गया है।
उस कॉल के ढाई घंटे बाद जब दिग्विजय सिंह कलेक्टर आवास पहुंचे तो जोगी नौकरशाह से जनप्रतिनिधि बन चुके थे। कुछ ही दिन बाद उनको ऑल इंडिया कमेटी फॉर वेलफेयर ऑफ शेड्यूल्ड कास्ट एंड शेड्यूल्ड ट्राइब्स का सदस्य बना दिया गया। इसके कुछ ही महीनों वह राज्यसभा के सांसद बन गए।
इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे 1998 तक राज्यसभा सदस्य रहे। साल 1998 हुए लोकसभा चुनाव में रायगढ़ से सांसद चुने गए। ये सिर्फ एक किस्सा मात्र नहीं है, बल्कि स्वयं अजीत जोगी राजनीतिक चर्चा के दौरान इस संस्मरण को कई बार सुना चुके थे।
शुक्ला ब्रदर्स को चुनौती देने के लिए राजीव ब्रिगेड का हिस्सा बने जोगी
उस समय पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली थी। राजीव देश के प्रधानमंत्री तो बन गए थे, लेकिन कांग्रेस में उनका प्रभुत्व नहीं था। हर क्षेत्र काअलग नेता था और उनका अपना अलग वर्चस्व था।
मध्यप्रदेश (तब छत्तीसगढ़ एमपी का ही हिस्सा था) की राजनीति में शुक्ला बंधुओं (श्यामाचरण शुक्ल और विद्याचरण शुक्ल) का रुतबा था। इस ब्राह्मण परिवार का आदिवासियों में अच्छा वर्चस्व था। राजीव गांधी को दिग्विजय सिंह और अर्जुन सिंह (दोनों मध्यप्रदेश के सीएम रह चुके हैं) ने शुक्ला बंधुओं के मुकाबले किसी आदिवासी नेता को उतारने की सलाह दी।
अर्जुन सिंह को गॉडफादर मानते थे जोगी
अर्जुन सिंह सीधी के चुरहट के रहने वाले थे। अजीत जोगी सीधी और शहडोल में कलेक्टर रहे थे। वहां उनका अर्जुन सिंह से संपर्क हुआ। यह भी कहा जाता है कि अजित जोगी, अर्जुन सिंह को अपना गॉड फादर बताते थे। अर्जुन सिंह ने राजीव को अजित सिंह का नाम सुझाया था।
रायपुर कलेक्टर रहने के दौरान ही अजीत जोगी पूर्व पीएम की नजर में पहली बार आए थे और उनकी पसंद बन चुके थे। राजीव की नजर अजीत जोगी पर टिकी थी। एक तेज तर्रार कलेक्टर, जो बोलता बहुत था, तो काम भी बहुत करता था।
दिग्विजय सिंह से हुआ था मतभेद
अजीत जोगी ने एक बार दिग्विजय के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था। 1993 में दिग्विजय सिंह के सीएम बनने का नंबर आया तो जोगी ने भी अपनी दावेदारी पेश कर दी। उनकी दावेदारी चली नहीं, लेकिन अजीत जोगी ने दिग्विजय सिंह से दुश्मनी जरूर मोल ले ली।
साल 1999 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो छोटे राज्यों की मांग तेज हो गई। इसके बाद 2000 में देश में छत्तीसगढ़ समेत तीन नए राज्य बने।
मध्य प्रदेश से अलग होकर बने इस राज्य के साथ 90 विधायक भी चले गए। इनमें श्यामाचरण शुक्ल, विद्याचरण शुक्ल, राजेंद्र शुक्ल और मोतीलाल वोरा जैसे चेहरे थे। झगड़ा खत्म करने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने छत्तीसगढ़ की पुरानी मांग, "आदिवासी सीएम' को उठाया। इस खांचे में अजीत जोगी ही फिट होते थे।
कहते हैं न राजनीति में लंबे समय तक कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है। अजीत जोगी और दिग्विजय के साथ भी यही हुआ। जोगी को विधायक दल का नेता बनाने के लिए दिग्विजय सिंह ने भरपूर समर्थन दिया। 31 अक्टूबर 2000 को अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बन गए।
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